तोड़ के सूरज का टुकड़ा, ओप में ले आऊं मैं! हो जलन हांथों में, तो क्या! कुछ अँधेरा कम तो हो. -मीत

क्योंकि वो प्यार के सागर हैं...

हमे जब भी कोई दुःख या कोई परेशानी होती है, तो हम तुंरत इश्वर, अल्लाह, भगवान जिस नाम से भी उन्हें बुलाते हैं, से प्रार्थना करने लगते हैं कि- भगवान मेरा ये काम बनवा दो, मेरे दुःख दूर कर दो, अगर पूरा हो गया तो भगवान को भूल जाते हैं... अगर नहीं पूरा हुआ तो भगवान को बुरा, भला और निर्दयी कह कर कोसने लगते हैं...
क्या कभी सोचा है कि भगवान पे क्या गुजरती होगी?
क्या कभी सोचा है कि एक दिन भी अगर भगवान अपने काम से छुट्टी लेकर चले जाएँ या अपना काम समय से ना करें, तो क्या होगा? शायद हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते... अरे सोच कर देखिये कि अगर सूरज, हवा, बारिश समय पर अपना काम ना करे तो क्या होगा?
कल रात मैंने एक हॉलीवुड फ़िल्म देखी जिसका नाम था ब्रूस अलमाईटी। मेरे दिल में इश्वर के प्रति जितनी भी श्रद्धा, प्यार और विश्वास था वो और भी ज्यादा हो गया...
फ़िल्म में एक लड़का होता है जो एक न्यूज़ चेनल में रिपोर्टर होता है, उसके पास पैसा, गाड़ी, घर, प्यार सब कुछ होता है, लेकिन वो उस से कहीं और ज्यादा कि चाहत रखता है। और ज्यादा कि चाह में वो अपनी नोकरी खो बैठता है। उसके बाद वही जो कि शायद दुनिया का हर इंसान करता है। वो भगवान को कोसने लगता है कि तुम बुरे हो, तुम मेरे बारे में नहीं सोचते, तुम्हें मुझ पर तरस नहीं आया... एक बार अपनी जगह मुझे रख कर देखो सारी दुनिया को खुश कर दूंगा...
वो हमेशा भगवान को कोसता रहता था, आखिर भगवान् को भी दुःख होता होगा... वो उसके पेजर पे एक नम्बर भेजते हैं... बार-बार लगातार, वो अपना पेजर फैंक देता है कि कोई उसे परेशां ना करे लेकिन टूटने के बाद भी उसमे नम्बर आता रहता है। आखिर वो उस नम्बर पे काल करता है। दूसरी तरफ़ से एक आवाज उसे कहती है कि मेरे पास तुम्हारे लिए एक जॉब है, पता लिखवाती है और फ़ोन कट...
वो फ़ोन पर बताये गए पते पर पहुँचता है गिरता पड़ता। बिल्डिंग में उसका कौन इंतज़ार कर रहा होता है, शायद आप समझ गए होंगे? जी हाँ वहां उसका इंतज़ार भगवान् कर रहे होते हैं, वो उसे उसकी इच्छाओं का अकाउंट दिखाते हैं, जिसमे उसकी रीसेंट इच्छा होती है की अपनी जगह मुझे रख कर देखो... पहले तो वो सब मजाक समझता है लेकिन वहां उसके साथ ऐसे इंसिडेंट होते हैं की उससे मानना पड़ता है की भगवान उसके सामने हैं। आखिर भगवान उसे कहते हैं मेरे पास तुम्हारे लिए एक जॉब है, मैं कुछ दिनों तक छुट्टी पे जा रहा हूँ और इस बीच मेरा कम तुम करोगे। मैं अपनी सारी शक्तियां तुम्हें दे रहा हूँ। तुम लोगो की मदद करना और सबको खुश रखना...
लेकिन इंसान तो इंसान ठहरा, वो सारी शक्तियां केवल अपने लिए ही इस्तेमाल करता है, वो फेमस हो जाता है जो जॉब वो चाहता था वो पा लेता है, लेकिन इस सब के बीच वो कई लोगो को विपदा में डाल देता है और अपने प्यार को भी खो बैठता है...
भगवान से पूरी दुनिया में हरपल कितने ही लोग ना जाने क्या-क्या मांगते हैं उसे वो सब सुनायी देती रहती है... आखिर वो उस समय भगवान ही तो था। वो उन आवाजो से परेशां हो जाता है... और सभी कामनाओं को पूरा होने का आशीर्वाद दे देता है...
और फ़िर वही होता है जो की बिना भगवान के होगा। सब कुछ उलटपुलट हो जाता है। वो तो भगवान ने उसे काम करने के लिए सिर्फ़ एक छोटा सा शहर दिया था, जिसमे की वो रहता था। इतने में ही उसका बुरा हाल हो जाता है... पूरे शहर की विशेज का उसके कानो में गूंजना, प्यार का खो जाना... आखिर उसके किए कामो से शहर पागल सा हो जाता है... जब उसके बस में कुछ नहीं रहता तो फ़िर वही...आखिर में उसे इश्वर की ही याद आती है... और इश्वर जिन्हें हम निर्दयी, बुरा और ना जाने क्या-क्या कह कर बुलाते हैं वो आ जाते हैं अपने बच्चे को सँभालने और सब कुछ ठीक कर देते हैं...
मैं आपके सामने फ़िल्म को इतनी अच्छी तरह से पेश नहीं कर पाया जितनी अच्छी तरह से उसे उस निर्माता ने पेश किया है... बस मैंने तो इसे आपसे बांटना चाहा है... लेकिन आप को जब भी मौका मिले फ़िल्म को देखियेगा जरुर...
मुझे फ़िल्म देखकर ये एहसास हुआ की हम कितने बुरे हैं। यूँ तो मैं भी इश्वर से बहुत प्यार करता हूँ, उनसे जो भी माँगा वो उन्होंने दिया, जब भी पुकारा तब-तब वो मेरे साथ रहे और हमेशा रहते हैं... लेकिन मैं भी जीवन में कई बार उनसे लड़ा हूँ, मैंने भी उन्हें कई बार भला बुरा कहा है। लेकिन उन्होंने मुझे प्यार के अलावा कुछ नहीं दिया... क्योंकि वो प्यार के सागर हैं...
हमें बस ये याद रखना चाहिए की वो हमेशा हमारे साथ है...
और अगर आपको उनसे कुछ कहना होतो- ऊपर देखो और कह दो वो जरुर सुनेंगे...
god blees the whole world....
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गुरु स्वाति द्वारा सिखाया गया हाइकु
हाथ उठाये।

दया का सागर।
स्नेह बरसाए।
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© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

तेरे साथ गुज़रे लम्हे, पल-पल पिघल रहे हैं...

तेरी चिता की आग में,
बरबस ही जल रहे हैं.
तेरे साथ गुज़रे लम्हे,
पल-पल पिघल रहे हैं।
आई है रुत ये कैसी?
ये कैसा गुल खिला है।
खुशियों का मेरा मौसम,
आज खाक में मिला है।
लगता है, ढल गई है,
हर शाम ज़िन्दगी की।
और उम्र से ही पहले,
अब हम भी ढल रहे हैं।
तेरे साथ गुज़रे लम्हे,
पल-पल पिघल रहे हैं।


भूलने की तो कोशिश बहुत की पर कमबख्त दिल से निकलता ही नहीं...दिन तो जैसे-तैसे निकल ही जाता है, पर रात होते ही फिर से ख्यालों में आने लगता है...इतना क्यों रुलाता है तू...

"चले गए तुम तो जहाँ से,
हुयी ज़िन्दगी पराई...
तुम्हें मिल गया ठिकाना,
हमें मौत भी ना आयी..."
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इक आह करी होगी,
हमने ना सुनी होगी।
जाते-जाते तुमने,
आवाज तो दी होगी।
हर वक्त यही है गम,
उस वक्त कहाँ थे हम।
कहाँ तुम चले गए...
हर चीज पे अश्कों से,
लिखा है तुम्हारा नाम।
ये रस्ते, घर, गलियां,
तुम्हें कर ना सके सलाम...
हाय! दिल में रह गयी बात,
जल्दी से छुडा कर हाथ,
कहाँ तुम चले गए...
अब यादों के कांटे,
इस दिल में चुभते हैं,
ना दर्द ठहरता है,
ना आंसू रुकते हैं...
तुम्हें ढूंढ रहा है प्यार...
हम कैसे करें इकरार?
के हाँ तुम चले गए...
चिट्ठी ना कोई संदेस,
जाने वो कौन सा देस,
जहाँ तुम चले गए...
इस दिल पे लगा के ठेस...
कहाँ तुम चले गए...
बस यही चंद गीत छोड़ गए हो गुनगुनाने के लिए...
(उपरोक्त गीत उड़न खटोला और दुश्मन फ़िल्म के हैं,
इन्हें आब में सुनता रहता हूँ)
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
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